भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल का निर्यातक देश है। यह अपनी पैदावार का 80 प्रतिशत बासमती चावल निर्यात करता है। ऐसी स्थिति में इसका भाव निर्यात के कारण से चढ़ता-उतरता रहता है। यदि बासमती चावल का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 850 डॉलर प्रति टन से ज्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में व्यापारियों को काफी नुकसान होगा। इससे किसानों को भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि व्यापारी किसानों से कम भाव पर बासमती चावल खरीदेंगे। इस मध्य खबर है, कि बासमती चावल की नवीन फसल 1509 किस्म की कीमतों में काफी गिरावट आई है। विगत सप्ताह इसके भाव में 400 रुपये प्रति क्विंटल की कमी दर्ज की गई।
किसान कल्याण क्लब के अध्यक्ष विजय कपूर ने बताया है, कि मिलर्स और निर्यातक किसानों को सही भाव नहीं दे रहे हैं। वह किसानों से कम कीमत पर बासमती खरीदने के लिए काफी दबाव डाल रहे हैं। उनकी मानें तो यदि सरकार 15 अक्टूबर के पश्चात मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस वापस ले लेती है, तो किसानों को काफी अच्छा मुनाफा मिलेगा। उन्होंने कहा है, कि पंजाब के व्यापारी हरियाणा से कम भाव पर बासमती चावल की 1509 प्रजाति की खरीदारी कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
किसानों को 1,000 करोड़ रुपये की हानि होगी
हरियाणा में कुल 1.7 मिलियन हेक्टेयर रकबे में से बासमती चावल की खेती की जाती है। इसमें से लगभग 40 प्रतिशत हिस्सेदारी 1509 किस्म की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार, यदि इसी प्रकार बासमती का भाव मिलता रहा, तो किसानों को कुल मिलाकर 1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
भारत सरकार गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगी
मीडिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक मामले से परिचित लोगों के अनुसार, सरकार समस्त नॉन-बासमती चावल के निर्यात पर रोकथाम लगाने की योजना पर विचार विमर्श कर रही है। मीडिया को मिले सूत्रों के अनुसार, सरकार विधानसभा चुनाव और उसके उपरांत आम चुनावों से पूर्व भारत में महंगाई के जोखिम से बचना चाहती है। सरकार इस कारण से चावल की नॉन बासमती वैरायटी पर प्रतिबंध लगाने के विषय में सोच रही है।
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भारत सरकार ने चावल की एमएसपी में 7% प्रतिशत की वृद्धि की थी
विशेष बात तो यह है, कि विश्व के कुल निर्यात का 40 प्रतिशत भाग भारत के पास है। साथ ही, भारत विश्व के अंदर सबसे सस्ता चावल भी निर्यात करता है। ऐसे में भारत यदि सस्ते चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाता है, तो दुनिया में चावलों के दाम में और भी इजाफा देखने को मिल सकता है। वहीं, दूसरी तरफ भारतीय चावल के निर्यात की कीमत में 9 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल चुकी है। विगत महीने ही सरकार ने चावल के एमएसपी में 7 % प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की थी।
भारत में इस बार धान की बुवाई 26 प्रतिशत कम हुई है
गर्मियों में मानसून के आरंभ में बारिश कम होने की वजह से संपूर्ण भारत में बुवाई कम देखने को मिली है। विगत हफ्ते के आंकड़ों पर प्रकाश डालें तो समर में बोये जाने वाला चावल विगत वर्ष की तुलना में 26 प्रतिशत कम है। इसकी वजह अलनीनो को ठहराया जा रहा है, जिसका प्रभाव सिर्फ भारत पर ही देखने को नहीं मिल रहा बल्कि थाईलैंड में भी देखने को मिल रहा है। जहां पर सामान्य से 26 प्रतिशत कम बरसात होने की वजह एक ही फसल उगाने को कहा गया है।
जानकारों ने बताया है, कि भारत में खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों पर रोकथाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने नॉन बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। क्योंकि चावल भारत में अधिकांश लोगों का भोजन है। सबसे विशेष बात यह है, कि भारतीय लोग नॉन बासमती चावल का ही सबसे ज्यादा सेवन करते हैं। यदि नॉन बासमती चावल का निर्यात सुचारू रहता तो, इसकी कीमतों में भी बढ़ोतरी हो सकती थी। ऐसे में आम जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाता। यही वजह है, कि केंद्र सरकार ने कुछ दिनों के लिए नॉन बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।
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नेपाल में इस वजह से बढ़ने वाले चावल के दाम
भारत से सर्वाधिक नॉन बासमती चावल का निर्यात चीन, नेपाल, कैमरून एवं फिलीपींस समेत विभिन्न देशों में होता है। अगर यह प्रतिबंध ज्यादा वक्त तक रहता है, तो इन देशों में चावल की किल्लत हो सकती है। विशेष कर नेपाल सबसे ज्यादा असर होगा। क्योंकि, नेपाल भारत का पड़ोसी देश है। उत्तर प्रदेश एवं बिहार से इसकी सीमाएं लगती हैं। फासला कम होने के कारण नेपाल को यातायात पर कम लागत लगानी पड़ती है। अगर वह दूसरे देश से चावल खरीदता है, तो निश्चित तौर पर निर्यात पर अत्यधिक खर्चा करना पड़ेगा। इससे नेपाल पहुंचते-पहुंचते चावल की कीमतें बढ़ जाऐंगी, जिससे महंगाई में भी इजाफा हो सकता है।
भारत ने बीते वर्ष टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था
बतादें, कि ऐसा बताया जा रहा है, कि गैर- बासमती चावल पर प्रतिबंध लगाए जाने से भारत से निर्यात होने वाले करीब 80 फीसदी चावल पर प्रभाव पड़ेगा। हालांकि, केंद्र सरकार के इस कदम से रिटेल बाजार में चावल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। साथ ही, दूसरे देशों में कीमतें बढ़ जाऐंगी। एक आंकड़े के अनुसार, विश्व की तकरीबन आधी आबादी का भोजन चावल ही है। मतलब कि वे किसी न किसी रूप में चावल खाकर ही अपना पेट भरते हैं। अब ऐसी स्थिति में इन लोगों के लिए चिंता का विषय है। बतादें, कि विगत वर्ष भारत ने टूटे हुए चावल के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।